क्योंकि है सपना अभी भी ...


मैं नहीं हूँ जानता क्यूँ आदमी आया यहाँ,
मैं न हूँ यह जानता क्यूँ मैं हूँ भरमाया यहाँ।
पर छुपी है एक अभिलाषा मेरे मन में कहीं;
सिर्फ़ आना और जाना है मेरा मकसद नहीं।

गर नहीं यह लक्ष्य तो फ़िर लक्ष्य क्या है,
देखकर बोला वो मुझसे प्रश्न तो उत्तम कहा है।
पर नहीं क्या जानते तुम;
सत्य तेरे सामने है, पर नहीं पहचानते तुम।

मैं न जाना सत्य क्या है,
बस रहा यह देखता, हर कृत्य क्या है।
और शायद देखकर भी ना दिखा हो,
सत्य मेरे हर तरफ़, हर एक जगह हो।


मुस्कराया वो मेरा परमात्मा,
बस यही ना जान पाये तुम अभी तक।
जानते भी तो भला पहचानते कैसे;
आवरण इतने पहन बैठे हो तुम।

तुम मेरा एक अँश ही तो हो,
पर कहाँ तुम मानते हो सत्य यह।
तुम रमे हो व्यर्थ पापाचार में,
हर तरफ़ हो रहे अत्याचार में।
पर कहाँ देखा है तुमने,
तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा।
अब एक युग के बाद तुमको कहाँ वह याद होगा;
पर मुझे सब याद है,
तुम नहीं हो, मैं अकेला हुँ मगर,
याद आता है कि सब कुछ खो गया है;
आज का मानव कि वापस सो गया है।

पर अकेला ही सही,शेष हूँ मैं,
युद्धरत मैं, तुम्हारा मैं।
क्योंकि है सपना अभी भी;
जाग जाओ है समय कितना अभी भी।।

Comments

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Some are truly made of GREAT

Eat less sugar, You are sweet enough already

EVM Politics in UP Assembly Elections