Posts

Showing posts from 2007

काहे रे मन धीर ना धरे

काहे रे मन धीर ना धरे, जो बस आवे सो ही करे। मन-ही-मन ये सहज मुसकावे, मन-ही-मन किस-किस पे मरे।। मन बस होय राम, सिय भायी, कान्हा ने रुक्मिणी भगायी। मेरो मन भी यही विचरै, जदपि बिबस कि करे तो क्या करे।। बालकाल सखियाँ अति भायीं, तरुणाई सब जग सुखदायी। पर म्हारी छबि पे कोऊ ना मरै, अब हमहूँ कितने जतन करैं।। मोरी प्रेम ब्यथा सुनौ, राधा नागरि सोइ। हमरे किये तो कछू ना हुइहै, अब तुम्हरे किये ही होइ।।

जीवन-संग्राम

रात अब जाने को है, फ़िर सुबह आने को है। ढल गया था कल जो सूरज, आग बरसाने को है।। जो अभी था डूबता सा, आ गया अब नाव पर। तप्त रेती की लपट से, घने वन की छाँव पर।। कब कहीं रोके रुकी है, अग्नि, जल की धार से। बच सका कब कोई जीवन, सर्प-विष-फ़ुँकार से।। जूझकर लड़ना समय से, ज़िन्दगी का काम है। मौत को भी दे चुनौती, ज़िन्दगी संग्राम है।।

मेरी प्रियतमा

आज एक ख्वाब देखा है मैंने, ख्वाब अपनी आँखों में सपने बोने का, और फ़िर लम्हा-दर-लम्हा उन सपनों को सींचते हुए, एक नयी सुबह का इन्तजार करना। बड़ा अजीब है यह सब, कुछ रोज़ पहले उससे मैं पहली बार मिला था, यहीं किसी छाँव के नीचे, फ़िर कुछ मुलाकातों में ना जाने क्या हो गया। आज कुछ नही सुहाता बगैर उसके, हर पल जाने क्यूँ उसकी ही याद सताती है, कुछ दिन पहले तक जिसे मैं जानता भी नहीं था, आज वही मेरी हर पल की साथी है। पर यह तो केवल अर्ध-सत्य है, पूर्ण-सत्य तो तब होता जब वो भी कुछ कहती, नहीं जानता हूँ क्या है उसके मन में, कुछ है भी या कुछ भी नही। पर शायद हिम्मत भी नही है यह पूछ पाने की, किस हक से मैं उससे ये पूछूँ। कोई तो अधिकार नही मेरा उस पर, पर मेरा तो खुद पर भी अधिकार नही रहा अब। मेरी आँखों में बस उसका सपना है, मेरे होठों पर उसकी हँसी। मेरा हर पल अब बस उसका ही है, वही है मेरी प्रियतमा उर्वशी।।

चुलबुली लड़की

जब हँसती है, अपनी हँसी से सारा जग हरसाती है। इक चुलबुली लड़की। जब वो रोती है, मुझको भी संग में रुलाती है। इक चुलबुली लड़की। जब मुझसे बातें करती है, लगता है बस इसकी बातों में बस जाऊँ। जब वो उलझे बाल सँवारे, मैं कंघी बनकर के बालों में फ़ँस जाऊँ। लेकिन मैं मजबूर बहुत हूँ, सच्चाई से दूर बहुत हूँ। जिस चुलबुली लड़की ने मेरा दिल भरमाया है, वो मेरी कल्पना है, निरी माया है। पर अपनी इस कल्पना के साथ मैंने जी है जिन्दगी, औरों के लिये रहस्य, लेकिन मेरी यही है जिन्दगी।

थक गया हूँ बहुत...आज सोता हूँ मैं

आज मुझे सो लेने दो, दिन भर का थका हुआ हूँ; नींद में ही सही रो लेने दो।। जब उसका कोई सहारा ना था, वो किसी का भी इतना दुलारा ना था; तब सहारा दिया था उसे एक दिन।। उसके आँसू गिरे जब भी, रोया हूँ मैं, उसकी हर आह पर एक आवाज की; उसको जीने की हर पल नसीहत भी दी।। आज खुश है वही और रोता हूँ मैं, उसको चिन्ता नहीं एक पल के लिये; अपने आँसू से पत्थर भिगोता हूँ मैं।। गम की दुनिया में गम के ही साये मिले, दोसत जितने भी ढूँढे पराये मिले, एक मुद्दत से हूँ राह पर मैं खड़ा; लोग जितने भी देखे,सताये मिले।। गम नहीं रीत है ये ही संसार की, क्षुद्रता है यही स्वार्थ व्यापार की, किन्तु फिर भी तिमिर को सँजोता हूँ मैं; थक गया हूँ बहुत,आज सोता हूँ मैं।।