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वो सुबह कब आयेगी...

सुबह जब ओस गहराती है, फिर वही बात याद आती है, वो चाँद का ढलना, वो सूरज का आना, वो कनखियों से फूलों का मुस्कुराना, पर क्यों नहीं लगता ये सब उतना सुहाना, जितना तब था, क्यों फूल चुभते हैं हृदय के पोरों पर, क्यों सूरज हरे कर देता है घाव सीने के, क्यों सुई सी चुभती है ये सुबह, क्या था तुम्हारी उस मुस्कान मे, कि जब तुम मुस्कुराती थी, ये सारा आसमान अपना सा लगता था, जब तुम पलकें झपकाती थी, लगता था जैसे सारा जहान मेरे साथ है, पर फिर एक दिन अचानक तुम मुझे छोड़कर चली गयी, तुम नही आयी, पर तुम्हारी खबर आयी, ऐसी भी क्या मजबूरियाँ थी, कि मुझसे बेवफ़ाई की तुमने, अब तुम तो जैसे तैसे जी ही रही होगी, पर मैं जानता हूँ अपनी ज़िन्दगी को, बिना साँस के जीना क्या होता है, बिना एहसास के जीना क्या होता है, पर फिर भी जी रहा हूँ मैं, बस एक आस के साथ, उस सुबह के इंतज़ार में।

खबरदार

लाला और शमशेर बहादुर दोनों बचपन के यार, दोनों ने मिल बैठ बनाई मिली जुली सरकार, कुछ विकास की माला जापे, कुछ को आत्मविकास, सब के सब ढोंगी पाखन्डी, रोज़ रचावत रास। बात-बात में बात बढ़ गयी बढ़ गया अन्तर्द्वन्द्व, बने विपक्षी ये दोनों हुए सत्ता पक्ष के खण्ड, दोनों ने मिल-बाँट के काटे हिन्दू-मुस्लिम तार, दंगे की शुरुआत हुई और मच गयी हाहाकार।। हर तरफ़ खून की नदियाँ बह रही थी, लाशें तैर रही थीं लाल-लाल पानी में, खून ही खून था खून का सैलाब था, बनी हज़ारों विधवायें हाय इस जवानी में; जनतंत्र में, गणतंत्र में, नेताओं के षडयंत्र में, बहता रहा खून इस भारत लोकतंत्र में।। यदि अब भी हम ना घेर सके इन नेताओं को, उनकी हर गलती को दुर्भाग्य मानते रहे, हर नेता अपनी कोठी बनाये करोड़ों से, गरीब जाड़े में ठिठुर-ठिठुर काँपते रहे। तो वो दिन दूर नहीं जब हम भी सड़क पर नज़र आयेंगे, अभी तो एक हाथ पानी में डूबे हैं,कपडों में लिपटे हैं, जब प्यास लगेगी प्यासे रह जायेंगे, जब भूख लगेगी दोनों हाथ फ़ैलायेंगे।।