काहे रे मन धीर ना धरे
काहे रे मन धीर ना धरे, जो बस आवे सो ही करे। मन-ही-मन ये सहज मुसकावे, मन-ही-मन किस-किस पे मरे।। मन बस होय राम, सिय भायी, कान्हा ने रुक्मिणी भगायी। मेरो मन भी यही विचरै, जदपि बिबस कि करे तो क्या करे।। बालकाल सखियाँ अति भायीं, तरुणाई सब जग सुखदायी। पर म्हारी छबि पे कोऊ ना मरै, अब हमहूँ कितने जतन करैं।। मोरी प्रेम ब्यथा सुनौ, राधा नागरि सोइ। हमरे किये तो कछू ना हुइहै, अब तुम्हरे किये ही होइ।।