मेरी प्रियतमा

आज एक ख्वाब देखा है मैंने,
ख्वाब अपनी आँखों में सपने बोने का,
और फ़िर लम्हा-दर-लम्हा उन सपनों को सींचते हुए,
एक नयी सुबह का इन्तजार करना।

बड़ा अजीब है यह सब,
कुछ रोज़ पहले उससे मैं पहली बार मिला था,
यहीं किसी छाँव के नीचे,
फ़िर कुछ मुलाकातों में ना जाने क्या हो गया।

आज कुछ नही सुहाता बगैर उसके,
हर पल जाने क्यूँ उसकी ही याद सताती है,
कुछ दिन पहले तक जिसे मैं जानता भी नहीं था,
आज वही मेरी हर पल की साथी है।

पर यह तो केवल अर्ध-सत्य है,
पूर्ण-सत्य तो तब होता जब वो भी कुछ कहती,
नहीं जानता हूँ क्या है उसके मन में,
कुछ है भी या कुछ भी नही।

पर शायद हिम्मत भी नही है यह पूछ पाने की,
किस हक से मैं उससे ये पूछूँ।
कोई तो अधिकार नही मेरा उस पर,
पर मेरा तो खुद पर भी अधिकार नही रहा अब।

मेरी आँखों में बस उसका सपना है,
मेरे होठों पर उसकी हँसी।
मेरा हर पल अब बस उसका ही है,
वही है मेरी प्रियतमा उर्वशी।।

Comments

  1. सही जा रहे हो, जारी रहो!! बधाई!!

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  2. दे‍खते रहिये क्ष्‍वाब और हमें भी दिखाते रहिये बधाई

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  3. बहुत सुंदर ख्वाब है भाई ....

    अच्छा लिखा है ...बधाई

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  4. आ गया पटाखा हिन्दी का
    अब देख धमाका हिन्दी का
    दुनिया में कहीं भी रहनेवाला
    खुद को भारतीय कहने वाला
    ये हिन्दी है अपनी भाषा
    जान है अपनी ना कोई तमाशा
    जाओ जहाँ भी साथ ले जाओ
    है यही गुजारिश है यही आशा ।
    NishikantWorld

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  5. hmm...was on orkut searching for an old friend who happens to share ur name...thats how got to see ur profile n then read that small introduction that u've given abt urself...n now the blog post...

    sorry for intruding like this...but honestly u r good at the poetry stuff...its interesting to note, however, that all iit n iim guys and gals r usually super talented...n u r no exception to tat...

    neway keep up the good work..

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  6. Thanks for the comments...
    Nice to know that the old friend of urs sharing my name made u come to my profile. :)

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