जीवन-संग्राम
रात अब जाने को है,
फ़िर सुबह आने को है।
ढल गया था कल जो सूरज,
आग बरसाने को है।।
जो अभी था डूबता सा,
आ गया अब नाव पर।
तप्त रेती की लपट से,
घने वन की छाँव पर।।
कब कहीं रोके रुकी है,
अग्नि, जल की धार से।
बच सका कब कोई जीवन,
सर्प-विष-फ़ुँकार से।।
जूझकर लड़ना समय से,
ज़िन्दगी का काम है।
मौत को भी दे चुनौती,
ज़िन्दगी संग्राम है।।
फ़िर सुबह आने को है।
ढल गया था कल जो सूरज,
आग बरसाने को है।।
जो अभी था डूबता सा,
आ गया अब नाव पर।
तप्त रेती की लपट से,
घने वन की छाँव पर।।
कब कहीं रोके रुकी है,
अग्नि, जल की धार से।
बच सका कब कोई जीवन,
सर्प-विष-फ़ुँकार से।।
जूझकर लड़ना समय से,
ज़िन्दगी का काम है।
मौत को भी दे चुनौती,
ज़िन्दगी संग्राम है।।
जूझकर लड़ना समय से,
ReplyDeleteज़िन्दगी का काम है।
मौत को भी दे चुनौती,
ज़िन्दगी संग्राम है।।
--बढ़िया है. लिखते रहें.शुभकामनायें.