मधु मुक्तक

बंद अभी करता मधुशाला,
अब न पियूंगा बिल्कुल हाला|
साकी की आँखें प्यासी हैं,
हा! ये मैने क्या कर डाला|

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नशे में बोलती हैं आदमी के दिल की आवाज़ें,
होशवालों की ज़ुबान में आवाज़ नहीं होती |

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तेरी नज़रों के पैमाने लुढ़क गये हम पर,
वरना हम यूँ नशा नहीं करते |

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कल जो लब से पिलाई थी उसने,
हम अभी भी उसी असर में हैं |

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सुबह सुबह बोतल शराब की बातें,
ये तेरी इंक़लाब की बातें;
होश आएगा भूल जाएगा,
हैं ये सारी ही ख्वाब की बातें |

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