मृत्युपर्व
मृत्यु सत्य है जीवन का, या जीवन मरता नहीं कभी। कहने को आदर्श खोखले, निन्दा करता नहीं कभी।। मेरा जीवन मेरा है, ईश्वर! फ़िर तेरा, कया तेरा; जब नहीं मानता ईश्वर को, फ़िर क्यूँ कहता ईश्वर मेरा। एक देव एक दानव मन में सदा बसाये हम रहते, जब जिसकी मर्जी चलती अपना-अपना दोनों कहते। सत्य कटु है, किन्तु अटल है, दानव मरता नहीं कभी; हाँ, सम्भव है देव कदाचित मर जाये। दानव हर पल हर क्षण तत्पर रहता है, ये भी सम्भव है देव कभी कुछ कर जाये। मैं नहीं कह रहा दानव शक्तिशाली है, पर क्यूँ हमने देवों से शत्रुता पाली है। अन्धा दानव कितनी भी शक्ति दिखा जाये, पर ये भी तय है कि प्रकाश भी आएगा। माना ताकत है दानव की चतुराई में, पर कब तक वो भी देव से खैर मनाएगा। सतयुग, त्रेता,द्वापर से कलि तक हम निकले, उतना ही आगे देवों से दानव निकले। पहले देवों में भी मानव सम्मानित था; अब तो मानव, दानव से भी दानव निकले। पर वाह विधाता! तू भी कम चालाक नहीं, तेरे आगे चल सकी किसी की धाक नहीं। जैसे-जैसे हम एक-एक युग बढ़ते गये; तुम मानव की आयु कम, और कम करते गये। है मृत्यु, विजयदशमी देवों की दानव पर,...
Comments
Post a Comment