बीती ताहि बिसार दे...
आज फ़िर वही बात याद आती है,
फ़िर से वो दिन-रात याद आती है।
हर बात भुला सकता है मन किन्तु,
हर बिसरी हुई बात फ़िर याद आती है।
सब कुछ दिख रहा है साफ़-साफ़,
फ़िर आँखें क्यूँ धुँधलके में रहना चहती हैं।
खुश रहना कितना सरल सा है;
फ़िर क्यूँ ये पलकें बरबस ही बहना चाहती हैं।
मन में एक अजब सा सन्तोष है,
चित्त में एक सुलगती सी ज्वाला है।
जो पीयूष-सुधा बन जीवन दे सकता था;
वो बन बैठा विष का प्याला है।
खैर अब जो भी है, जैसा भी है,
उसे उसी रूप में स्वीकार करना है।
राह में फ़ूल आयें या काँटे;
सबको समभाव से पार करना है।।
फ़िर से वो दिन-रात याद आती है।
हर बात भुला सकता है मन किन्तु,
हर बिसरी हुई बात फ़िर याद आती है।
सब कुछ दिख रहा है साफ़-साफ़,
फ़िर आँखें क्यूँ धुँधलके में रहना चहती हैं।
खुश रहना कितना सरल सा है;
फ़िर क्यूँ ये पलकें बरबस ही बहना चाहती हैं।
मन में एक अजब सा सन्तोष है,
चित्त में एक सुलगती सी ज्वाला है।
जो पीयूष-सुधा बन जीवन दे सकता था;
वो बन बैठा विष का प्याला है।
खैर अब जो भी है, जैसा भी है,
उसे उसी रूप में स्वीकार करना है।
राह में फ़ूल आयें या काँटे;
सबको समभाव से पार करना है।।
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletewah.. kya kavita hai..
ReplyDeleteis kavita mebahut ache sabdo ka use kiya hai...
Kanpur
Dhanyavad Ashley :)
ReplyDeleteAshley..as i can see u from kanpur..
ReplyDeletedo i know u?