खबरदार

लाला और शमशेर बहादुर दोनों बचपन के यार,
दोनों ने मिल बैठ बनाई मिली जुली सरकार,
कुछ विकास की माला जापे, कुछ को आत्मविकास,
सब के सब ढोंगी पाखन्डी, रोज़ रचावत रास।

बात-बात में बात बढ़ गयी बढ़ गया अन्तर्द्वन्द्व,
बने विपक्षी ये दोनों हुए सत्ता पक्ष के खण्ड,
दोनों ने मिल-बाँट के काटे हिन्दू-मुस्लिम तार,
दंगे की शुरुआत हुई और मच गयी हाहाकार।।


हर तरफ़ खून की नदियाँ बह रही थी,
लाशें तैर रही थीं लाल-लाल पानी में,
खून ही खून था खून का सैलाब था,
बनी हज़ारों विधवायें हाय इस जवानी में;
जनतंत्र में, गणतंत्र में, नेताओं के षडयंत्र में,
बहता रहा खून इस भारत लोकतंत्र में।।


यदि अब भी हम ना घेर सके इन नेताओं को,
उनकी हर गलती को दुर्भाग्य मानते रहे,
हर नेता अपनी कोठी बनाये करोड़ों से,
गरीब जाड़े में ठिठुर-ठिठुर काँपते रहे।

तो वो दिन दूर नहीं जब हम भी सड़क पर नज़र आयेंगे,
अभी तो एक हाथ पानी में डूबे हैं,कपडों में लिपटे हैं,
जब प्यास लगेगी प्यासे रह जायेंगे,
जब भूख लगेगी दोनों हाथ फ़ैलायेंगे।।

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