मातृभूमि
हे माँ!तुझसे बढकर ना कोई अपना, अब जागा हूँ नींद से देख रहा था सपना। करुणा ममता अपनेपन में तू अनुपम है, दया प्रेम सौहार्द्र का तू संगम है।। जब मैं रोया तूने मुझको गले लगाया, जब भी मुस्काया तूने है साथ निभाया। चला गिरा दौड़ा लातें भी मारी तुझपर; पर न्योछावर करती रही तू प्रेम निरन्तर।। अगर कोई संसार में बढ़कर तुझसे, माँ, है, भले विधाता कहे ये मुझसे झूठ कहा है। अपना पेट काटकर मुझको रोटी देती, बदले में मुझसे ना है कुछ भी लेती। जीवन भर तू हर पल मुझको अपनाती है, बाद मृत्यु के काम मातृभूमि आती है।। तेरी मिटटी का सोंधापन मुझको भाता , तेरा निर्मल जल है सबकी प्यास बुझाता। उसी मातु पर कोई विदेशी आँख गड़ाये, तेरी रक्षा ना पुत्र तेरा कर पाये। माँ डरना मत तू इतने पुत्रों की माँ है, बाल तेरा छू जाये किसी में शक्ति कहाँ है।। जिस-जिस ने आघात तुझे माँ पहुँचाये हैं, वो तेरा मातृत्व नहीं जान पाये हैं। पुत्र सुपुत्र कुपुत्र भले जैसा जो भी हो, पर भारत माँ ममता का आगार तुम्ही हो। अगर दोबारा इस धरती पर जीवन पाऊँ, भारत माँ हर बार तेरा बेटा कहलाऊँ।।