प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया
हमने आँखों में सौ सपने सजाये , उसे देखा और हम मुस्कराये। गलती बस इतनी की उसे अपना मान बैठे, जो बूझे नहीं अब तक वही सपना मान बैठे। करते भी तो क्या, ये दिल ही तो है, और फ़िर दिल तो बच्चा है जी। हम समझे दिल्लगी ही सही; जो भी है अच्छा है जी। माना हम अच्छे थे, सच्चे थे; लेकिन अकल से एकदम कच्चे थे। दिल्ली को हमारी ये दिल्लगी रास नहीं आई, लग गई नज़र। लड़की ने पता नहीं दिल लगाया भी या नहीं, कमबख्त हम पर तो आिशकी का फ़ितूर था। हम थक गये उसके घर के चक्कर लगाते-लगाते; और वो बोली तुम हमको ज़रा भी रास नहीं आते। अब इश्क का भी अज़ब दस्तूर है, जब लगने पे आती है, तो लग ही जाती है। ज़ख्म बहुत गहरा हुअ, वक्त लगता सा था ठहरा हुआ; ऐसे फ़ँसे मायाज़ाल में कि न माया मिली न छाया। हमको अपने इस हाल पे जमकर रोना आया। रोये, खूब रोये और क्यूँ न रोते; अपने ही करम धो रहे थे। तय कर लिया प्यार, मोहब्बत, इश्क का मीठा-मीठा रिस्क अब नहीं सहना; इतने टार्चर से बेहतर है चैन से अकेले रहना।।