प्रेम
शुकदेव और काग प्रभु की चर्चा अत्यन्त महान, खिल जाते है रोम सारे सिंचित होते प्राण । एक प्रात जब प्रश्न जगत हित काग प्रभु ने छेड़ा, शुक के मुख से उत्तर सुनकर उदगत हुआ सवेरा।। प्रश्न काग का उत्तम था, क्यों राधा श्याम कहाए जबकि विवाह श्याम निज मति से रुक्मणि संग कराये। प्रभु शुक ने उत्तर तब दीन्हा, सुनहु काग मुनिराज ! प्रेम अभीष्ट प्रेम अवलंबित प्रेम जीव बड़भाग। प्रेम काम का पुंज नहीं, है प्रेम प्रकृति का रूप; प्रेम प्रकृति के इस वर्णन में राधा दिव्या स्वरुप। प्रेम सदा परिणत हो विधिवत जगत मान्य परिणय में, यह आवश्यक नहीं किंतु इतना निश्चित आशय में। प्रेम सदा उद्दीप्त रहेगा प्रेम सदा उत्कृष्ट, प्रेम भाव का सानी जग में कहीं नहीं अन्यत्र।। प्रेम नहीं वो किंचित जिसमें लेश मात्र भी छल है, प्रेम समर्पण प्रेम भावना प्रेम अतीव सरल है। यों तो जीव सकल हैं जीते इस जग के आश्रय में ; लेकिन जीवन सफल वही जो बीते प्रेम प्रणय में ॥ -- आदित्य कुमार तिवारी < नवम्बर २००६ > ( ये कविता मैंने उस समय लिखी थी, जब मै अपने अभियांत्रिकी तृतीय वर्ष में था और उद्योगनगरी एक्सप्रेस से मुं...